कवि प्रकाश कुमार जी द्वारा 'स्वयं सीखने दो ना' विषय पर सुंदर रचना

स्वयं से सीखने दो ना।

स्वरचित कविता

18/8/2020

स्वयं से सीखने दो ना।
स्वयं से लिखने दो ना।।
क्या हुआ जो गिर जाये।
स्वयं से उठने दो ना।।

हमे जो बात बात पर यू टोकते हो।
आत्मनिर्भर बनने से जो रोकते हो।।
ऐसा करने क्या होगा जानते हो क्या।
जो पैरों को बाँध दौड़ने को कहते हो।।

गिरने दो गिरेंगे तभी तो उठ पाएंगे।
अच्छे बुरे के मध्य भेद कर पाएंगे।।
स्वतंत्र ना रहे तो सीखने नही सकते।
जीवन में हमे स्वयं सृजन करने दो ना।

चिर गगन में हम उड़ना चाहते।
उत्साह से नए भाव सीखना चाहते।।
अब करके देखों और समझकर देखो
स्वच्छन्द होकर विचार रखने दो ना।।

भले लाखों तरकीबें पढले हम।
क्या इससे उड़ना सिख पाएंगे।।
अपने जीवन के भाग्य को क्या।
हम बेहतर कल लिख पाएंगे।।

अपने ज्ञान के कौशल को।
अपने ह्रदय के अंतः तल को।।
अपनी चेतना को जगाकर।
हमे स्वयं का पँख फैलाकर।।
हमें नील गगन में उड़ने दो ना।।

बार बार ये कहना कि ये ठीक है ये ठीक है
क्या इतने से ही हम ठीक कर पाएंगे।।
देखो सोचो तो जो है क़ौमल गात हमारे
बार बार प्रताड़ित करने से हम ढीठ बन जाएंगे।।
इससे अच्छा बनकर  मित्र दे सहारा उड़ने दो ना।।

तितली को लेकर भागो हमारे संग।
देख तरह तरह फूल देख मुस्कुराने दो
कभी देख मोर पपीहे को हमको
भी उनके जैसा मन में भाव बनाने दो।।

छोड़ दो हम पर यू बंदिशें लगाना।
हमे जान अबोध हमें केवल रटाना।।
हमारे संग हमारे जैसा बन जाओ।
बनकर मित्र हमारा राह दिखाओ ना।।

तब हम क्या क्या कर सकते है।
इसका पार तुम पा सकते हो।।
लेकिन जब चलोगे साथ हमारे।
तभी हमारे भाव समझ सकते हो।।

सदा इसी तरह हमे खेल खेल में
अपने आप बढ़ना सिखने दो ना।।

प्रकाश कुमार (मधुबनी, बिहार)

9560205841



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