कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा 'आशा का परचम लहरा' विषय पर कविता

दिनांक-30/08/2020
दिन-रविवार 
विषय-"आशा का परचम लहरा"
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विधा-कविता
प्रकृति-स्वरचित 

आशा का परचम लहरा , किसान बीज बोता है।
कड़ी धूप, ठिठुरती ठंड,बरसात क्यों न होता है?
लगा रहता है दिन-रात धरा पे अन्न को उगाने में।
उसको फिक्र नहीं रहता, अपने पहनने खाने में।

आशा  का  परचम  लहरा ,सरहद पर है जवान।
माॅ भारती की सुरक्षा को,ही मानता है कल्यान।
घर,परिवार, रिश्ते, नाते सभी ही उसका फीका।
देशसुरक्षा के सामने उसको कुछ ही नहीं दिखा।

आशा का परचम लहरा,शिक्षक भी देता है ज्ञान।
मुझसे शिक्षित बच्चों से  देश बने विश्व में महान।
विषय ज्ञान से, सदा करते रहते है, अभिसिंचित।
जो  बच्चों को, योग्य बनाने में, होता है समुचित।

आशा का परचम लहरा, वैज्ञानिक करते है शोध।
मानव कल्याणार्थ ही, सदा रहता है उनका बोध।
नई नई तकनीकों का, करते रहते वही तो खोज।
जिससे सभी लोग,लाभान्वित होते रहते, है रोज।

आशा का परचम लहरा,चिकित्सक करते इलाज।
सफलता प्राप्त कर लेते , कोरोना जैसी लाइलाज। 
सेवा भाव से ही , रोगियों को, कर देते है रोगमुक्त।
स्वस्थता से, समाज का भविष्य होता है स्वर्णयुक्त।

आशा का परचम लहरा,चित्रकार करता चित्रकारी।
निर्मित चित्र में सजीवता का प्रदर्शन हो जाये भारी।
कलाकारी से, सबको कर देना चाहता है मंत्रमुग्ध।
चित्रकारिता जो भी देखें,चाहे वो क्यों न हो प्रबुद्ध?

आशा का परचम लहरा,गीता पाण्डेय भी लिखती।
कवि-कवयित्रियों से कुछ न कुछ नया ही सिखती।
प्रयास करती हूॅ,मेरी कलम में आ जाये  ऐसी धार।
समझें,साहित्य मित्र मंडल जबलपुर, है समझदार।

✍स्वरचित कविता
गीता पाण्डेय(उपप्रधानाचार्य) 
रायबरेली, उत्तर प्रदेश

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