कठपुतलियां

कठपुतलियां

 कठपुतलियां है जीवन के,
 रंगमंच की ।

जुड़ी है जिन धागों से ,
जो सभी के,
धागों को नचाता है ।

किसी को,
वो कठपुतली वाला ,
नजर नहीं आता है।

ढील देता है सबको ,
अपने-अपने किरदार में ,
परखता है हर इंसान को,
अपने दिए हुए संस्कार से ,

देखता रहता है सबको ,
उनके अदा किये किरदार में,
कैसे भटक रहे हैं ।
उलझे हैं किन ख्यालात में ।

भूल जाते है हम 

है.. किसके हाथ में ,
सोचते हैं............... बस 
हम ही है इस संसार में ,

सबको नचाते है। 
कभी पैसों से,
कभी ताकत के अंहकार से।
लेकिन.........

कब उसके हाथ के, 
धागे खींच जाते है।

जीवन के रंगमंच से, 
कितने किरदार निकलते ।
और कितने नए आ जाते है।

कठपुतलियां नाचती रह जाती है।
पर धागों से बंधी होकर भी, 
उस धागे वाले तक नहीं पहुंच पाती है।
स्वरचित रचना
       @प्रीति शर्मा "असीम "नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

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