शुभ सत्संग सदा सुखदाई

🌾शुभ सत्संग सदा सुखदाई🌾
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तन मन धन कर्म मृदुवचन से करना जन मन जग की भलाई।

सत्कर्म    ब्रह्मचर्य     मानवता शुभ सत्संग सदा सुखदाई।।


कर्मभूमि का मर्म अनुपम पल-पल है शुभ कर्म महान।
सर्वोपरि सत्संग सुधा से  ही मिलता है पावन  ज्ञान।
मानवता माधुर्य महक से नारायण बनता इन्सान।
सदगुरु सत समाज सेवा में समावेश सत्य भगवान।

अन्तः ज्योति जगा जन मन में प्रगट करता कोमलताई।
सत्कर्म ब्रह्मचर्य मानवता शुभ सत्संग सदा सुखदाई।।

ब्रह्मचर्य सत्संग मानवता की सर्वोतम शुभ वृति।
स्वतः सिध्द सुलभ कर देता पूर्ण बोध अखण्ड चिति।
यही आधार साक्षात्कार का यही है प्रभु पावन प्रीति।
जगत जीव कल्याण में निहित सदगुरु सन्त समाज धृति।

जय जय संत समाज सदगुरु जय सदगुरुवर की गुरुताई।
सत्कर्म ब्रह्मचर्य मानवता शुभ सत्संग सदा सुखदाई।।

सदगुरु संत जग जीव की सेवा प्रभु भक्ति है सत्य करम।
संत समागम हरि भजन सत्संग से कटता सकल भरम।
स्वस्थ सुखी दीर्घायु जीवन का ब्रह्मचर्य है देव परम।
नर योनि श्रेष्ट लख चौरासी का मानवता है मूल धरम।

स्वर्ग सूक्ति निःश्रेयस पद भी देता यह उपलब्ध कराई।
सत्कर्म ब्रह्मचर्य मानवता शुभ सत्संग सदा सुखदाई।।

संयम व्रत तप पूजा पाठ का सबल श्रोत सत्संग सदा।
अक्षय शान्ति स्वान्तः सुखाय का अनुभव दाता सुढंग सदा।
करुणा दया धर्म मानवता का भी चढा़ता रंग सदा।
भक्ति भाव भजन का भरता जन जन में उमंग सदा।

प्रभु समर्पित "बाबूराम कवि "मिलती सत्संग से प्रभुताई।
सत्कर्म ब्रह्मचर्य मानवाता शुभ सत्संग सदा सुखदाई।।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )
मो0नं0- 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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