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सत्य ,धर्म ,करुणा व श्रध्दामय भी होना चाहिये।
आदमी में शर्मो-हया का भय भी होना चाहिये।।
सोचे विचारे सब कोई धारे सनातन मार्ग को ,
पाप ,लिप्सा ,मोह ,मद का क्षय भी होना चाहिये ।
मान मानवता मिले सबको सदा बिखरे महक ,
ज्ञान के आलोक का उदय भी होना चाहिये ।
लख चौरासी योनि में यस श्रेष्ट मानव तन अहा !
बद ,बुरा ,विकर्म पर विजय भी होना चाहिये ।
जिस तरह सँवरे यह दुनियाँ सब खुशी हो प्यार में,
प्यार के गीतों में पावन लय भी होना चाहिये ।
सदाचार ,सत्कर्म , शुभ सत्संग ही तो है सदा ,
इसलिये हर मुख से जग में जय भी होना चाहिये।
निज साहस विश्वास से "बाबूराम कवि "आगे बढो़ ,
प्यार में पुरुषार्थ हो यह तय भी होना चाहिये।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)८४१५०८
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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