कवयित्री शशिलता पांडेय जी द्वारा 'सागर किनारा' विषय पर कविता

       💥सागर किनारा💥
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अथाह सागर का ,
एक विस्तृत किनारा।
  जल के प्रवाह में तरंगित,
समुन्द्र की लहरें।
मचाती शोर और करती,
घूमकरअठखेलियाँ।
   लगता जैसे जलक्रीड़ा ,
करती सहेलियाँ।
तट पर शोभित तरु,
ताड और खजूर का।
     दृश्य कितना अद्भुत ,
अनोखा सा नजारा।
चमकती चाँदनी सी रेत,
तट पर ओढ़ चादर।
           चाँदी की, नींद के,
आगोश में लेटी वसुन्धरा।
कभी ऊँचे को उठती,
      लहरें कभी नीचे गिरती।
 झंझावाती लहरें झूम-झूम,
       लेती तट का सहारा।
लौट जाती तट के अधरों को,
चूमकर मौज में।
    चंचल तरंगे कर जलक्रीड़ा ,
लौट कर आती दुबारा।
सागर-गगन आलिंगन में,
मिलते दूर क्षितिज में,,।
  ढलता सूरज अस्ताचल में,
सिन्दूरी रंग है बिखरा।
सुन्दर सृष्टि का सृजन सागर,
अनुपम चंचल सी लहरें।
  अद्भुत छटा निराली ,
अप्रतिम सौंदर्य पूरित धरा।

                                        स्वरचित और मौलिक
🎂समाप्त🎂                     सर्वाधिकार सुरक्षित
                                  लेखिका- शशिलता पाण्डेय

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