मंच को नमन
विषय -प्रकृति वंदन
आओ करें प्रकृति का वंदन
रहे कहीं न धरा पर क्रंदन
धरती का श्रृंगार करो तुम
मत वृक्ष का संघार करो तुम
देते हैं औषधि हमें वन
आओ करें प्रकृति का वंदन
शुद्ध हवा देते हैं उपवन
महकाते हैं सबका तन मन
हम करें पवन का अभिनंदन
आओ करें प्रकृति का वंदन
तुम जल को मत व्यर्थ बहाना
पानी बूंद बूंद बचाना
जल से है जन-जन का जीवन
आओ करें प्रकृति का वंदन
पहाड़ रोकते हैं तूफान
फिर क्यों बनते हो अनजान
रोको इनका अब तो दोहन
आओ करें प्रकृति का वंदन
करें सब मिलकर कर संरक्षण
इनसे ही मिलता है पोषण
यदि प्रकृति है तो है जीवन
आओ करें प्रकृति का वंदन
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक )कोंच
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