कवि चंद्र प्रकाश गुप्त "चंद्र" जी द्वारा 'मत घबराओ' विषय पर सुंदर रचना

*शीर्षक*- *मत घबराओ*
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भयंकर अंधेरा देख घना मत घबराओ
सजग रहो उपाय करो पृकाश बढ़ाओ..
सक्रिय सकारात्मक विश्वासों की सोच बनाओ
निशा जायेगी , उषा आयेगी निराशा को धूल चटाओ..
प्रखर अरुण को बादल कब तक छुपा सकेंगे
शीतल मधुर मयंक की आभा कब तक चुरा सकेंगे
जब तक सूरज चांद रहेगा वसुधा का वैभव अमर रहेगा
आत्मा  तो अजर-अमर है,
रूप बदल कर आना जाना बना रहेगा
मानव है हम घबराये क्यों योद्धा बन कर टकराये
अजातशत्रु जन्मजेय हैं हम सृजन का श्रृंगार करायें
आवश्यकता आविष्कार  की जननी है
प्रयोगशाला, विपत्ति की अवनी है
आओ सब मिलकर नूतन सृजन की धूरी बनें
अस्थि गलायें अपनी दधीचि का नवबज्र बनें
बिलखती दुनिया को ढांढस दे जग के पालन हार बनें
दिखा दो भारत में शक्ति कितनी सब हमारे ऋणी वनें
पात्र आधा खाली है मत कहो
पात्र आधा भरा है ये कहो
यदि सोच बदल ली हमने अहो पूरा जग जीत लेंगे हम ऐसा कहो
चीन का माल वैसे भी कितना चलता है
मेरे भारत के सामने ऐसा खिलौना कितना टिकता है ?
वसुधा का घना अंधकार हम जीतेंगे
कोरोना हारेगा हम विकट व्याधि से जीतेंगे......
भयंकर अंधेरा देख घना मत घबराओ
सजग रहो उपाय करो प्रकाश बढाओ
   
        🙏  वन्दे मातरम्  🙏

         चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
          अहमदाबाद , गुजरात
***********************   मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद , गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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