"संकल्प"
जून माह में स्कूल का नया सत्र शुरु हो गया था । स्कूल का पहला दिन और आर्ट्स क्लास के पहले पीरियड मे राशी मेडम आती हैं ।
कक्षा मे करीब 35-40 बच्चे थे । मेडम नें उपस्थिति लेने के बाद बच्चों से आर्ट्स विषय लेने का उद्देश्य पूछा तो कुछ ने कहा कि उनको साइंस कठिन लगता हैं तो कुछ ने कहा कि दसवी कक्षा मे गणित का पेपर बिगड़ गया था तो कम प्रतिशत आने के कारण साइंस नहीं मिला और कुछ बच्चे थे जिन्होने कहा कि वे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने ये विषय चुना ।
सबकी सुनने के बाद राशी मेडम बोली कि मेथ्स या बायो नहीं मिल पाया ..इसीलिए आर्ट्स विषय चुने जानें के कारण मायूस होने की जरूरत नहीं । कोई जरूरी नहीं कि जो बच्चा पढ़ने मे होशियार हो, वो सायंस विषय ही चुने । हर विषय की अपनी अलग महत्ता होती हैं । बस जरूरत हैं लगन, विश्वास के साथ अपनी जागती आंखों मे एक सपना पालने की ।
इतना कहने के बाद राशी मेडम नें अपनी पर्स से समाचार पत्र की कटिंग निकाली और बच्चों को दिखाते हुये पूछने लगी - इस फोटो मे क्या दिख रहा हैं सारे बच्चों कों ?
एक बच्चा बोला - "मेडम, जहा तक मुझे याद हैं ये फ़ोटो तो पिछले साथ पेपर मे छपा था..किसी रिक्शे वाले के बेटे का सेलेक्शन यू पी एस सी मे हुआ था ।
बिल्कुल सही पहचाना । इसकी माँ मेरे घर चौका बर्तन किया करती और इसके पापा मेरी बेटी और मोहल्ले के दूसरे बच्चों को स्कूल ले जाया करते थे ।
कभी कभार जब हमें कहीं बाजार जाना होता और हम इसके पापा को बुलाते तो अक्सर विभु भी साथ आ जाता और रिक्शे की सीट पर बैठकर अपने साथ लाई किताब कॉपी अलट-पलट किया करता । उसकी ये फ़ोटो मैंने ही खींची थी ।
इसकी माँ अक्सर मुझे बताया करती कि विभु का दिमाग बड़ा तेज हैं पढाई मे कक्षा मे अव्वल आता हैं । उसके पापा का मन हैं कि अच्छा पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी करें पर सरकारी स्कूल मे पढ़कर भला कौन सी नौकरी मिलेगी ? अंग्रेजी मीडियम स्कूल की फीस हर किसी के बस की नहीं ।
बात तो उसने सोलह आने सच कही कि मजदूरी से परिवार का पालन पोषण करने वाले के लिये ऐसे सपने देखना बड़ा बेमानी सा था । पर यह भी सही हैं कि "अभाव मे ही प्रभाव होता हैं ।"
राशी मेडम नें आगे बताया कि विभु का पढाई के प्रति लगाव देखकर उसकी पढाई की जिम्मेदारी उन्होंने संभाली । क्यूंकि उन्हें विभु मे बहुत संभावना नजर आ रहीं थी ।
मेडम की बेटी उससे एक साल बड़ी थी ..उसकी सारी किताबे नोट्स विभु को मिल जाते । बोर्ड परीक्षा मे मेरिट मे आने पर उसे सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप मिलती गयी ।
चूँकि मेडम की बेटी ग्रेजुएशन के साथ दिल्ली मे रहकर यू पी एसके सी की कोचिंग ले रही थी तो उसको जो भी मटेरियल पढ़ने को मिलता ..बेटी मेल से सारा मटेरियल मेडम को भेज दिया करती ।
राशी मेडम ने विभु के लिये सारे सिलेबस के सेट तैयार कर रखें थे ।
हालांकि उनकी बेटी का दोनोँ बार इंटरव्यू मे सेलेक्शन नहीं हुआ पर विभु नें पहली ही बार मे ए आई आर 10 रेंक बनाईं ।
राशी मेडम की बात सुनकर सभी बच्चों नें तालियां बजाई ।
"बच्चों, "जहां चाह, वहां राह" ये बात विभु नें साबित कर दी ..फिर क्युं ना तुम सब भी आज ऐसा ही कुछ "संकल्प" लेकर अपने लक्ष्य की ओर चल पड़ो ?
अंजली खेर
भोपाल
0 टिप्पणियाँ