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*ग़ज़ल*
*जलमग्न होकर बिलख रही बस्तियाँ,*
*अग्निसंस्कार बिन बह रही अस्थियाँ.*
*न दिखायी देते है कोई रास्तें,*
*वाहनों के जगह चल रही कस्तियाँ.*
*दर्द जिसका वही जाने है जनाब,*
*फ़ोटो खिंचाने आती है हस्तियाँ.*
*छेड़ते है हम प्रकृति के अंगों को,*
*आकर आपदा बन्द हुयी मस्तियाँ.*
*संरक्षण करना है निसर्ग का हमे,*
*नही तो खराब होगी परिस्थितियाँ.*
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®© *श्री देवेंद्र चौधरी, तिरोडा*
जिला-गोंदिया (महाराष्ट्र)
ता. ३१/०८/२०२०
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