चूहा,जंगल में मंगल

 बाल कविताऐं
       *चूहा*
लुकते-छिपते धीरे धीरे ।
बार-बार आता चूहा ।।

कपड़ों के अंदर घुस जाता। 
कुतर-कुतर करता चूहा।।

जब तक नहीं पकड़ा जाता।
धमा चौकड़ी करता चूहा।।

चुन्नू - मुन्नू भागे-दौड़े ।
आंखें मटका डराता चूहा।।

दादी कहती पिंजरा लाओ।
तब जाकर मानेगा चूहा।।
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*जंगल में मंगल*
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नाचे भालू पूंछ हिलाए। 
चतुर लोमड़ी शीश नवाए।।

चूहा बैठा ढोल बजाए।
नन्ही चिड़िया गीत सुनाए।।

जंगली भैंसा दौड़ लगाए।
बन्दर सबको नाच नचाए।।

बिल्ली बैठी ताक लगाए।
शिकार फिर हाथ न आए।।

सारे पक्षी एक सुर गाए।
जंगल में मंगल हो जाए।।
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मईनुदीन कोहरी
नाचीज बीकानेरी
मो.9680868028

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