अंतरराष्ट्रीय कवयित्री अनुपम रमेश किंगर जी द्वारा रचना

फिर आज जुम्मे का बाजार लगा 
फिर बोली सरेआम हुए 
फिर एक मेहंदी सिंदूर बिंदिया 
घर की दहलीज पर नीलाम हुई
 मां के दूध का फिर हुआ सौदा अजमत मोहब्बत की सरेआम लूटी आंसू किसी को ना नजर आए
 बस एक जिंदगी तमाशा जहान हुए।

-अनुपम रमेश किंगर(अंतरराष्ट्रीय कवयित्री)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ