बदलाव मंच
स्वरचित रचना
गीत-राम है त्रिलोकी।
गंगा की बहती धारा।
भी राम राम ही गाये।
देते है शरण शत्रु को भी
जो ह्र्दय में राम राम ले आये।।
दुनियाँ में जपते ही होता पूरन काम।
आओ मिलकर बन्धुओं बोलो जय श्री राम ।
राम राम बोलते ही पत्थर भी तैराये।
दुर्भाग्य भी उसका क्या बिगाड़े जो
नित जो राम राम गुण गाये।।
वो ही तो धर्म के रक्षक
जिनकी महिमा का बखान
करते है वेद पुराण जी।
जिनके बाल पर चलती है दुनियाँ।
जिनके भक्ति में डूबे हनुमानजी।
प्रेम के मोतियों से माला पिडोते
देते है दूजे को जो नित वरदान।
माया जाल से बचे रहोगे
फिर होगा नही काम तमाम।।
सब अपना ही हो जाते है
रहता नही कोई परायण।
रघुबन्सी है रघु कुल के दीपक
वही तो नर में नारायण।।
जिस जिसने उनको है पूजा।
नही हुआ फिर उसे अभिमान।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
9560205841
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