हां.. मैं बदल गया हूँ,

हां.. मैं बदल गया हूँ,
मुझमें अब भटकाव नहीं है,
अंतर्मन मे कोई घाव नहीं है,
चलता रहा हूँ धूप में वर्षों,
लेकिन ठंडी सी तो छांव यहीं है,
सीखा है जो भी वक्त के थपेड़ों से,
अब तो ईर्ष्या द्वेष का भाव नहीं है,
आशा की लहरें लेती हिलकोरे,
लेकिन मन मे कोई टकराव नहीं है।

हां ..मैं बदल गया हूँ....
दुनिया के लिए बहुत कुछ किया,
रत्ती भर भी तो परवाह नहीं है...
मैंने भी सीख लिया है ये हुनर,
अब मेरे मन में भी कोई भाव नहीं है,
अपनी करो, और अपनी ही करो,
जीवन का ऐसा आविर्भाव नहीं है,
नेकी कर दरिया मे डाल,
लेकिन जग मे कोई बदलाव नहीं है।

हां.. मैं बदल गया हूँ..
क्योंकि मैंने जीना सीख लिया है,
हां को ना कहना सीख लिया है,
खुद को समझने लगा हूँ,
खुद के लिए ही जीने लगा हूँ,
अपना पराया समझने लगा हूँ मैं,
हां....
सच में बहुत बदल गया हूँ मैं....
डॉ सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया, दिल्ली

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