कवयित्री प्रतिभा प्रसाद कुमकुम जी द्वारा 'समीकरण' विषय पर रचना

(00)             *समीकरण*

जीवन के इस समीकरण में ।
जोड़ घटाव व गुणा भाग में ।
समय कदाचित खेल खेलता ।
किस से किसका समीकरण है ।
कौन किसका उत्प्रेरक करण ।
कौन छल प्रपंच रचा है ।
चौसर का पासा फेंका है ।
अपने मन ‌का‌ अंक दिखाता ।
समय का पहिया जब चलता है ।
समीकरण का खेल बिगड़ता ।
मन से मन की दूरी ,भाव भावना पूरी ।
अंतस में कुछ राज छिपा है ।
बाहर में कुछ और दिखा है ।
यह है समीकरण का खेला ।
पासा किसका खेल किसी का ।
खेल बिगाड़ा और किसी का ।
पास में रहकर प्यार दिखाया ।
अंतस से उसको भरमाया ।
संचालन का खेल ‌अनोखा ।
डोरी किसका खिंचें कौन‌ ?
कौन गिरा है कौन घिरा ।
समीकरण का खेल निराला ।
डोरी किसकी खिंचें कौन‌ ?
गुनहगार रहता है मौन ।
मंद मंद मुस्काता है ।
मीठी बाणी बतियाता है ।
मीठी बाणी से बचना ।
यह समीकरण का पासा है ।
सदा काम कर जाता है ।
मधुर मोहन मुरली के धुन पर ।
सबको नाच नचाता है ।
अपना समीकरण बनाता है ।
जोड़ घटाव गुणा भाग में ।
अपना अंक बीठाता है ।
बस समीकरण बन जाता है ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  24.8.2020........

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