कवि रामबाबू शर्मा द्वारा रचित 'मेरी पीड़ा' विषय पर कविता

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                 कविता

              *मेरी पीड़ा*

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   जन-जन परेशान पर मानता कोई नहीं,
   कैसे पड़े पार सुनने को तैयार नहीं।
   कुछ बोलों तो एक-दूजे की पहचान नहीं,
   मेरी पीड़ा जानते सब,माने कोई नहीं।।

   पानी और बिजली बचाओं,बचाये कौन,
   सब राष्ट्र सम्पति की रक्षा करो,पर करें कौन।
   भ्रष्टाचार तो मिटे भू से,पहल करें कौन,
   मेरी पीड़ा शुरू करने की ठाने कौन।।

   मात पिता से बड़ा दुनियां में कोई नहीं,
   मां की ममता का इस वसुधा में मोल नहीं।
   मधुर वाणी,शिष्टता से बड़ी पहचान नहीं,
   मेरी पीड़ा समझते सब माने कोई नहीं।।

   संस्कार व संस्कृति ने यही तो पाठ पढ़ाया है,
   देश की आन-बान के लिए मिट जाना है।
   जन्म भूमि पर सतकर्मो की अलख जगानी है,
   मेरी पीड़ा यह, सब को फर्ज निभाना है।। 
     ©®
         रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

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