प्रसिद्ध युवा कथाकारा अंजलि खेर की हृदयस्पर्शी लघुकथा

**सच हुआ सपना**


बिन माँ की बच्ची को संभालना आखर सिंग के लिये कोई आसान काम नहीं था, तिस पर उसके रंग-रूप और अंग्रेजी ना आने के कारण लोगों द्वारा मज़ाक बनाये जानें के कारण बिटिया ने खुद को चार दीवारी में कैद कर लिया था ! 
       आखर उसे समझाता कि रूप रंग नहीं, बल्कि व्यक्ति के गुण उसकी पहचान और सुंदरता होते हैं । आखर उसे याद दिलाता कि वो सिलाई बहुत अच्छी कर लेती हैं तो क्युं ना अच्छी मशीन लेकर सिलाई का काम बड़े स्तर पर कर दे,,,,,, वो  समझाता कि स्वावलम्बी वनों और जिंदगी के हर पल को खुलकर जियो  । 
      आखर की समझाइश का बेटी पर कोई असर नहीं हुआ ! हार मानकर उसने एक रोजनदारी पर काम करने वाले लड़के से उसकी शादी कर दी । आखिर बेटी को कब तक घर पर बिठाए रखता,,, कम से कम पिता के बाद जीवन का एक आसरा तो बना रहेगा ।
       पर किस्मत का लेखा कौन बदल सकता है भला,,,,,शराबी पति के घर अपनी बिटिया को एक एक चीज के लिये तरसते देखता तो उसको  बाहर निकलकर अपने हुनर को नये आयाम देने,,,,किसी बड़ी टेलरिंग की दुकान पर काम करने को कहता ।  लगभग रोज ही बेटी के घर जाता,, उसके घर का दरवाजा खुला देख ये सोचकर दुखी हो जाता कि बेटी आज भी काम ढूंढने बाहर नही गयी,,,क्या करता पिता का मन न मानता और वो बेटी  को समझाइश देकर वापस जाते जाते उसके हाथ में पैसे थमा देता । 
         ऐसे ही एक  दिन आखर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, वो बिटिया के सामने वाली गली में पहुचा तो देखा कि हमेशा की तरह घर का दरवाजा खुला नहीं था ..दरवाजे पर ताला लगा था और कुंडी पर चिट में लिखा था -पापा काम पर जा रहीं हुं .अब से .रोज शाम ही घर पर मिलूंगी ।  पढ़कर वो  खुशी से फूला न समाया ।  
      जेब में हाथ डालकर नोट निकालकर  खुद से ही कहने लगा कि अब उसकी बिटिया को पैसे की जरूरत नहीं, क्यूंकि अब बिटिया आत्मनिर्भर हो गयी हैं । 

अंजली खेर 
भोपाल

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