यह आर्यावर्त हमारा

🌾यह आर्यावर्त हमारा 🌾
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मन भावन सावन सा स्नेहिल सकल विश्व से न्यारा।
सोन चिरईया ,विश्वगुरु यह आर्यावर्त हमारा।।

ललित ललाम धाम देवों का सुखद शुभ सलोना।
स्वर्ग से भी बढ़कर है आर्यावर्त का कोना-कोना ।
परम  पुनीत भारतभूमि की मिट्टी  भी है  सोना ।
अतः राष्टृ रक्षा बिन मानव व्यर्थ है नरतन खोना।

शुभ सदगुण ,सदभाव विश्व में भारत ही है पसारा।
सोन चिरईया विश्वगुरु यह आर्यावर्त हमारा।।

जागृत रह करो जतन आजादी देश धर्म समाज नताओं।
कवि ,लेखक ,पत्रकार प्यार से सोये जनमानस को जगाओ।
यथशीध्र अब जगो युवाओं राष्टृ हित में आगे आओ ।
सब हो करके एक नेक यह प्यारा भारत देश बचाओ ।

राष्टृ सुरक्षा स्वयं की रक्षा इसी में हित है सारा ।
सोन चिरईया विश्वगुरु  यह आर्यावर्त हमारा।।

विश्वबन्धुत्व ,एकत्व ,सत्य का पावन पाठ पढा़ता भारत।
परहित परमार्थ में स्वार्थ छोड़ के रहता आगे भारत।
बेबस ,लाचार ,असहाय को शुचि उत्संग उठाता भारत।
जगत हित में हँसकर अपना शीश चढा़ता भारत ।

करुणा ,दया आस्तिक्य ,क्षमा हेतु निज सर्वस्व है हारा।
सोन चिरईया विश्वगुरु  यह आर्यावर्त  हमारा।।

वेद ,शास्त्र ,श्रुति ,गीता ,रामायण यहाँ सशक्त सबल है।
सत्य  ,अहिंसा , तप , त्याग  संतोष शुचि अचल है।
सर्व प्रगति , मानव  उत्थान  की सर्वोतम शुभ हल है।
वेद संस्कृति आर्यावर्त की अनुपम श्रेष्ट विमल  है ।

सम्पूर्ण विश्व ,वसुन्धरा पर भारत है स्वर्ग सितारा।
सोन चिरईया  विश्वगुरु  यह आर्यावर्त हमारा।।

सेवक संत ऋषि भारत में अदभुत अति महान हुए।
सत्य  शिरोमणि दानी ज्ञानी कवि लेखक विव्दान हुए।
देशभक्त सत्कर्मी धर्मी प्रभु-मार्गी गुणवान हुए ।
अनमोल उत्तम से उत्तम नर पुंगव अगुआन हुए ।

अस्तु !आर्यावर्त " बाबूराम कवि "प्रभु प्रकृति को प्यारा ।
सोन चिरईया  विश्वगुरु  यह आर्यावर्त  हमारा ।।

*************************बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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