बदलाव साहित्य मंच
दिनांक- 09-08-2020
स्वरचित रचना
कविता--कोरोना काल
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देखो आफत आन पड़ी है,
मानव सृष्टि पर इक भारी।
अति शुक्ष्म एक वायरस ने,
हाहाकार मचाया भारी।
चमगादड़ का भोज किया था,
या हथियारों की थी तैयारी।
मनमौजी मानव ने अपने,
हाथों अपनी दशा बिगारी।
मानव की जब देह मिले,
रक्तबीज सा जन्मे भारी।
रोगी व्यक्ति की छीकं से,
निकले यह संख्या में भारी।
मुहँ पर गमछा हो या सारी,
फिर बाहर की हो तैयारी।
कोरोना को रोक सके बस,
मानव से मानव की दूरी।
नर्स डॉक्टर स्वास्थ्य कर्मी,
शक्ति के जैसे अवतारी।
रक्तबीज कोरोना को ग्रसने।
अपनी जान जोखिम में डारी।
अहंकार के कारण थे,
ऐटम बम मिसाइल भारी।
थर्रा गई वो महाशक्तियां,
शस्त्रहीन वायरस से हारी।
कुछ अज्ञानी मजहबियों ने,
व्यवस्थाऐं बिगाड़ी सारी।
ऐसे लगता है क्यों ऐसे,
देशद्रोह कि हो तैयारी।
मानवता जिनके अन्दर थी,
उसने तोड़ी गुल्लक प्यारी।
मजबूरों की मदद को आये,
सच्चे मानव सेवा धारी।
वोट बैंक बढाने खातिर,
नेता बाटें धन सरकारी।
जिनके वोट पे राज करे,
खींचें फोटो मैं लाचारी।
पुलिस प्रशासन सख्ती से,
रोक रही है भगदड़ भारी।
आपस में दूरी ना हो तो,
कोविड बन जाए महामारी।
खबरें हमको देते तत्क्षण,
मिडिया का साहस है भारी।
बिजली पानी सफाईकर्मी,
सबकी मेहनत के आभारी।
कह रमेश कोरोना काल मैं,
भूल पड़ेगी सब पर भारी।
मौका है परिवार के संग,
यादें ताजा करलो प्यारी।
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नाम - रमेश चंद्र भाट
पता - मकान संख्या,
टाइप-4/61-सी, अणुआशा कालोनी, रावतभाटा, पिन: 323307
मो0(9413356728)
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