विषय- गौ माता
"""गौ माता की पुकार ""
युगों युगों से गो माता ने बहाई है अमृत धारा
तभी हिन्दू संस्कृति ने इसे माँ कहकर पुकारा
कैसे मिटाएगी मन अंत:करण की देह के कल्पेष को
कही नहीं मासूम हृदय जो जाने माँ की पीड़ा को
हर दुश्चिन्तन के विरोध में ,माँ का हृदय हाहाकारा
तभी हिन्दू संस्कृति ने इसे माँ कहकर पुकारा
भाव मन के प्रेम का क्यों निर्झर किया तुमने
क्यों कसाइयो के हाथ में सौप दिया है हमे
हमे चाहिए केवल निश्छल सरल समर्पण तुम्हारा
तभी हिन्दू संस्कृति ने इसे माँ कहकर पुकारा
किलकिला उठी माता , अपने बिखरते आँगन को
दया धर्म सब कहाँ गया , फेशन की होड़ मिटाने को
वही माँ जो वांड्मय बनकर देती अमृत की धारा
तभी हिन्दू संस्कृति ने इसे माँ कहकर पुकारा
देश के जवान जाग !शोर्य स्वाभिमान जाग
राष्ट्र संस्कृति, समाज भाग्य के विधान जाग
शुभ सहज अमृत से , हर मनुज का मन सवारा
तभी हिन्दू संस्कृति ने इसे माँ कहकर पुकारा
स्वाति "सरू" जैसलमेरिया
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