विषय:भूख
विधा :कविता
दिनांक :01/09/2020
*भूख*
दो जून की,
रोटी के लिए!
चल पड़े मजदूर नंगे पैर
मेहनत मजदूरी के लिए!!
हाथ में तसला,
और फावड़ा लिए!
ऊंची गगनचुंबी,
इमारतों को निहार रहे!!
कोई काम पर रख ले,
ईश्वर से यह दुआ मांग रहे !
अपनी झुग्गी मे,
शाम जब लौटेंगे!!
आशा भरी निगाहों से,
भूखे बच्चे जब देखेंगे!!
तब उनकी भूख मिटाने को,
दो जून की रोटी की,
मांग कैसे हम पूरी करेगे !
अमीर लोग कब सुधरगें,
हमारी व्यथा को कब समझेंगे!!
अमीरी गरीबी की,
यह खाई कब पटेगी,
हमारी भूख कब मिटेगी !
शिवशंकर लोध राजपूत✍️
(दिल्ली)
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यह स्वरचित व मौलिक रचना है !
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