. कविता
*ओस की बूँद*
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आओ कुछ सीखें,सीख आज,
ओस बिंदु से पावनता ।
मनभावन मोती है ,छू लें,
मानव मानस मानवता ।।
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धरा पुत्र भी चहक उठा है,
फसलों पर लगते मोती ।
आओ हम अभिनंदन कर लें,
ओस शान कुदरत होती।।
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ओस बूँद जीवन माया है,
परहित मंगल गाना है ।
अगवानी हम करें ओस की,
खुद मिटकर जग जाना है।।
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करें प्रतिज्ञा पेड़ लगालें,
फैलेगी महिमा शबनम ।
समय किसी का नही,सगा है,
सीखें ओस बूंद जम-जम।।
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सूरज की अगवानी करते
ओस कणो सें , सीखें हम ।
त्याग और बलिदान रखें मन,
कभी न मन के दीखे गम ।।
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खुद मिटकर भी भूख मिटा दें
ओस बूँद पर हितकारी ।
स्वेद किसानों, मजदूरों का
सैनिक भू का उपकारी ।।
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©®
*रामबाबू शर्मा"राजस्थानी"*
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