कवि प्रकाश कुमार मधुबनी जी द्वारा 'जीवन' विषय पर रचना

जीवन को तुम जीना सीखो।
विष तन्हाई का पीना सीना सीखो।
कोई नहीं अपना यहाँ सफर में।
 स्वयं फ़टे घावों को सीना सीखो।।

किसी के खातिर कोई सजदा नहीं करता।
अबतो धोखा देने के लिए पर्दा नहीं करता।।
अब छोड़ दो यू किसी के सहारे की आस में।
अब स्वयं अकेले ही जिंदगी जीना सीखो।।

क्या है हमने भी महल शिशे का बनाया था।
जब किसी का इस दिल में तस्वीर सजाया था।।
उन्हें शायद गुमान हो गया तब से समझ गया मैं।
तुम भी अकेले के बल पर आसमान छूना सीखो।।

कौन कहेगा आज कि मैं भी घायल हूँ।
चाहा किसी को बेहद करके वक्त पर उनकी पैरों की पायल हुए।।
 सोचा भी ना था ये दिन भी आएगा।
तभी कहता हूँ  कि बनकर कभी हमारे दिल के ओ हसीना सीखो।।

प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ