(मधुर कविता घूंघट).....आ. जयंती सेन 'मीना' जी द्वारा सुंदर रचना

घूंघट.......

चाहे कितने ही बौने हों
हम सही ,
चांद को छूने की तमन्ना 
सब में है ।
तंबू गाड़ कर वहां 
आशियां बनाने की,
दिल में एक दबी चाहत 
सब में है।।

यह देखने की फुर्सत 
किसी को नहीं ,
हम जमीन पर खड़े हैं भी,
या नहीं ।
फूल बनकर खिलने की 
चाहत है दिल में,
कौन देखे ज़मीं से जड़ें 
जुड़ी हैं, या नहीं।।

दम भरते हैं चांद को थाली में 
परोस लाएंगे ,
पानी में उसे घेरकर अपने
छत पर सजा डालेंगे ।
चांद सिर्फ उसी का हो
 गैरों की नजर 
न पड़े उस पर ,
जरूरत हुई तो चांद को
घूंघट भी ओढ़ा‌ डालेंगे।।

यह मेरी मौलिक रचना है।

जयंती सेन 'मीना' नई दिल्ली।
9873090339.
 





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