नमन मंच
दिनांक--25/09/2020
दिवस --शुक्रवार
**विषय-- बेरोजगारी**
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उदास हूं आज,
बहुत दिनों बाद निकला हूं।
घर से बाहर,
ढूंढने को कुछ काज।
हूं मैं पढ़ा लिखा,
और हूं एक कलमकार।
काज कहीं नहीं मिला,
हो गया हूं बेरोजगार।
मजदूरी तो करता हूं,
पर मजदूर को नहीं मिलती छोकरी।
ख्वाहिशें उनकी पूछो तो,
चाहिए उन्हें सरकारी नौकरी।
कैसी अर्थव्यवस्था हो गई,
अजीब यह बीमारी हो गई।
भिखारियों की हालत अच्छी,
ज्यादा बेरोजगारी हो गई।
नौकरी की चाह में,
घूमता हूं दर -बदर।
निराशा ही हाथ लगती है,
कैसे जाऊं अब मैं घर।
रचनाकार --नीलम डिमरी
चमोली ,,,,उत्तराखंड
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