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जन-जन धीर-वीर क्षीर से बना गम्भीर ,
पुष्ट करी हीर पीर हर लेती प्यार से।
प्यार व दुलार शुभ श्रध्दा -स्नेह शुचि ,
नेहनव नित लाती गेह दुग्ध धार से ।
प्रतिभा प्रखर नेक नियत नजर शुध्द ,
बुध्दि -बल विवेक देती सेवा सत्कार से।
गंगा जस पावन गोमाता " कवि बाबूराम "
पूँछ से उबारे भव वैतरनी धार से।
देके बाछा- बाछी -बैल गोधन क्षीर सुधा ,
सुअन्न अनूठा सुख शान्ति को बढा़ती है।
परहित , परमार्थ , परोपकार में सदा ,
तिल -तिल होम कर स्वयं मिट जाती है।
पावन मल -मूत्र से इलाज कर रोगों का ,
सर्व सुख भोगों से सृष्टि को सजाती है।
विमल विचार सत्य सार " कवि बाबूराम "
प्यार अपनत्व जन - मन में जगाती है।
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष शारदा दिनेश ,
सर्व देवों को रोम - रोम में बसाती है।
चौदह भुवन ब्रह्माणड त्रिलोक पूज्य ,
माताओं की माता कामधेनु कहलाती है।
कीजै गऊ सेवा वेद शास्त्र व पुराण कहे,
मानव जीवन श्रेष्ट सुफल बनाना है।
मुक्ति दायिनी है गऊ माँ कवि बाबूराम ,
प्राण देके प्राण गऊ वंश को बचाना है।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज ( बिहार )841508
मो0नं0 - 9572105032
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