कवि- आ.डॉ. सत्यम भास्कर जी द्वारा अपनी पत्नी को समर्पित प्रेम काव्य-रचना

कुदरत का नजराना, 
दीदार हो तो मिज़ाज शायराना, 
हुश्न को दिखाती हो आईना, 
बेशकीमती तोहफा है आपका शर्माना, 
स्पंदन कहती ईश्क में डूब मरना, 
मशक़्क़त से मिले हो अब क्या तलाशना.

दिल जवां, मदहोश है धड़कन, 
पाकर भी पाने को है एक तड़पन, 
छूकर भी छूना चाहे  ये पागल मन, 
शोहरत, इज़्ज़त, बरकत, तेरे हैं नयन, 
ऐ खुदा, शुक्रिया तेरा, नायाब तराशा तन मन, 
होने लगी अब तो चांद को भी आपसे जलन. 

मिले हैं बड़े नसीब से हम तुम सनम, 
मिलते रहेंगे, जनम, जनम, हर जनम, 
देखो भाव खा रही आज मेरी कलम, 
ओस की बूंदों सी चमक कर दो थोड़ा रहम, 
भास्कर का उदय को, खुशमिजाज सनम, 
कविता, शायरी, गीत, गजल, आपसे ही है ये सत्यम.

आपको समर्पित है मेरी ये रचना, 
आभूषणों से भी बढकर हो एक गहना, 
जन्मदिवस पर मेरी सौगात स्वीकार करना, 
दिल की धनी हो, मेरी गृहलक्ष्मी, सुलक्षणा, 
आपकी हंसी, नशीली निगाहें, अंदाज कातिलाना, 
हंसती रहो, खुश रहो, जन्मदिन पर मेरी हार्दिक शुभकामना.

-डॉ. सत्यम भास्कर 'भ्रमपुररिया'

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