हिन्दी#गीता पांडेय जी द्वारा अद्वितीय रचना#

14.09.2020
  🇮🇳🇮🇳     हिन्दी.   🇮🇳🇮🇳

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हिन्दी पखवाड़े पे हिन्दी हिन्दी चिल्लाते हैं।
          खुद घर में भी वे हिन्दी नहीं अपनाते हैं।।

हिन्दी का उद्धार नहीं तब तक संभव।
             जब तक झूठ को सच कर नहीं दिखाते हैं।।

हम सब की मातृभाषा है हमारी हिन्दी।
           भारत माँ के माथे की है ये बिंदी ।।

मिलकर अब हम इसे उपेक्षा से बचायें।
        इसकी ऑन बान औऱ शान को बढ़ाये।।

हिन्दी ही तो हमारी बनी अभिमान है।
          इस जहाँ का भी ये स्वाभिमान है।।

एक सूत्र में हम सब को ये बांधती है।
           भावों को ये एक दूसरे तक पहुचाती है।।

रस छंद अलंकार औऱ व्याकरण सिखाती।
          अक्षर पाई मात्रा से नए शब्द है बनाती।।

अभिवादन भारतीय हो प्रणाम ही अपनाए।
     कुटिल चक्र से उबरकर अंग्रेजी छोड़ हिंदी बढ़ाये।।

गीता कहती सब मिलकर हिन्दी उर बसाएं।
        अनुपम भाषा देश की इसको ही गले लगाएं।।

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🇮🇳जय हिंदी जय हिंदुस्तान🇮🇳

          गीता पांडेय
    रायबरेली-प्रतापगढ़

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