कवि अनन्तराम चौबे अनन्त जी द्वारा 'बेटी' विषय पर रचना

     बेटी दिवस पर
दिनांक 27/9/2020  
कविता..
फूल सी नाजुक बेटी होती

फूल सी नाजुक बेटी होती
आसमान की परी है लगती ।
घर आँगन को महकाती रहती
परी सी ये सुन्दर है लगती ।

बेटी फूलो सी महकती है
हवाओ सी ठंटक देती है
पानी सी शीतलता देती है
गुलशन को महकाती है ।

सुन्दर प्यारी गुडिया लगती
बस जादू की पुडिया लगती।
बेटी हर घर का सपना है
बेटी जब घर में है रहती।

खेलती खाती धूम मचाती
घर आँगन में मस्ती करती।
बेटी सुन्दर  सपना लगती
आसपास माँ के  ही रहती ।

माँ के काम में हाथ बटाती
माँ से हर शिक्षा है मिलती ।
माँ बेटी की गुरु है होती 
माँ के आँख का तारा होती ।

फूल सी नाजुक बेटी के
सुन्दर रुप सुहाने रहते ।
भाई बहन जब साथ में होते
बचपन के दिन सुहाने लगते ।

बेटी का बचपन तो बस
फूल सा जैसा होता है
बहुत ही नाजुक होता है ।
मिट्टी के कच्चे घडा सा होता है।

नाजुक सा वो बचपन प्यारा
फूल से जैसा कोमल होता ।
फूल सी नाजुक बेटी का
कितना सुन्दर जीवन होता ।
 .  अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर मप्र
मौलिक व स्वरचित

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