मंच को नमन
शीर्षक-एक न एक दिन
परिवर्तन होता है एक न एक दिन
सच नाम होता है एक न एक दिन
जो रखते अडिग अपना विश्वास
उसी व्यक्ति की पूरन होती आस
लक्ष्य आकर पूछता उसका पता
जो आमजन का हरते हैं संत्रास
कर्म फल मिलता है एक न एक दिन
परिवर्तन होता है एक न एक दिन
अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा
दुख है तो निश्चिय सुख भी होगा
डर डर कर जीना है तो क्या जीना
यदि मृत्यु है तो जीवन भी होगा
रोता तो हंसता है एक न एक दिन
परिवर्तन होता है एक न एक दिन
व्यर्थ में अपना समय मत गंवाना
बाधाओं से कभी मत घबराना
तुम मानव हो मानव से प्यार करो
माणिक खून किसी का मत बहाना
नेह शत्रु झुकता है एक न एक दिन
परिवर्तन होता है एक न एक दिन
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच
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