ना बन पाये तारे ही
बन जाना।
तारे भी ना बन पायें तो दिया
दीपक ही बन जान।।
कहती है दुनिया घर का चिराग
मत ऐसा करना घर के ही चिराग
से घर को ही पड जाए जलना।।
चाहने वाले तो तेरी लौ को
नहीं देखना चाहेंगें बुझाना।
चिराग है तेरी भी जिम्मेदारी है
कुछ रौशन कर दे दुनियां।।
तमाम तूफ़ान हवाओं के झोंके
तुझे बुझा कर चाहते अंधकार
ही करना।।
तू चिराग है दिया दीपक है तुझे
तुफानो से है लड़ना।
तूफानों में भी है जलना तेरे रौशन
उजियार में दुनियां को है चलना।।
फानूस बनकर हिफाजत
करने नही आता क़ोई फानूस खुद ही
खुद का फर्श से अर्श
तक तेरे उजाला का रहना।।
प्रज्वलित चिराग, मशाल तमाम
तुफानो की दुश्मन हवाओं को
पड़ता है दर किनार करना।।
जेठ की भरी दोपहरी में भी
तेरा लौ बेमिशाल।
सूरज को भी नाज़ तुझमे देखता
है अपना ओज तेज युग की
आशाओं का विश्वास।।
आशाओं का अम्बर है विश्व का
आत्म प्रकाश विश्म्भर है ।
तेरे होने ना होने का एहसास युग
को है।।
चिराग तू सर्वोत्तम ,उत्कृष्ट,
उत्कर्ष आशाओं का निष्कर्ष
आस्थाओ का आशिर्बाद का
चिराग हर माँ बाप का अंतर मन है।।
संतान है नादाँ पुत्र नौजवान है
धरती भी कहती सपूत अभिमान है।
चिराग सी तेरी हस्ती दुनियां दरमियाँ है ।।
अमावस के भी अंधेरों में भी तू
आश विश्वाश है।
रोशन चाँद ,चाँदनी भी
तेरे चाहत का प्यार है।।
युग काल का वर्तमान पुरुषार्थ है
धरती का चाहे जो भी कोना हो
उत्तर ,दक्षिण ,पूरब ,पक्षिम हर
धरती का धीर धैर्य तू पहचान है।।
तेरे कदमों में दुनियां तू ही
नौजवान है काल बदल दे
काल की चाल बदल दे चरम
चरमोत्कर्ष की मिशाल चिराग
दुनियां के माँ बाप की संतान
चिराग हैं।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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