मंच को नमन
रचना का विषय- हे सृजनहार सुनो पुकार
मानव मानव का करे सत्कार
अब तो हे सृजनहार सुनो पुकार
छाए हैं तम के बादल चहुओर
दिखता नहीं कहीं सुख का ठोर
अपनी कृपा दृष्टि से हे सर्वेश्वर
मेरे संकट तुम हर लो कठोर
मिटें घृणा भाव सब करें दुलार
अब तो हे सृजनहार सुनो पुकार
अब न हो कहीं निर्दोष का ग्रास
अब न हो कहीं निर्धन का उपहास
हे दयानिधि सुनो विनय हमारी
अब हरो तुम धरती का संत्रास
अब यहां बहे प्रेम की रसधार
अब तो हे सृजनहार सुनो पुकार
तुमसे ही है प्रकृति का श्रृंगार
तुमसे ही है अंबर का विस्तार
हे महेश्वर कर दो दया वृष्टि
अब तो जगत का कर दो उद्धार
हे ईश करो माणिक पर उपकार
अब तो हे सृजनहार सुनो पुकार
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच
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