पावन मंच को नमन
विषय - *प्रेम व्यवहार*
विधा- कविता
प्रेम व्यावहारिक की होलिका है जली,
द्वेष बैर व्यवहार की खिल रही है कली।
आत्मीयता से आदमी है आज दूर,
मानवता के सारे मूल्य है चूर-चूर।
व्यापारी बन गया है सारा जगत,
रुपयों के दिखते हैं सभी भगत।
प्रेम व्यवहार अब गया है ठहर,
अभिमान में घूमता प्राणी है हर पहर।
प्रेम व्यवहार बिन संसार है बिखर जाता,
कोई भी मुसाफिर मंजिल को है नहीं पाता।
प्रेम बिना खुशियों की चाबी है नहीं खुलती,
दिलों को जोड़ने की निशानी है नहीं मिलती।
प्रेम की ताकत ने बहुतों को है झुकाया ,
प्रेम व्यवहार में राम ने शबरी का है झूठा बेर खाया ।।
साधना मिश्रा विंध्य
उत्तर प्रदेश लखनऊ
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