कवयित्री चंचल हरेंद्र वशिष्ट जी द्वारा 'उठो! राष्ट्र के वीर' विषय पर रचना

बदलाव अंतरराष्ट्रीय /राष्ट्रीय साहित्यिक मंच
  23 सितम्बर,2020
            
राष्ट्र कवि श्री राम धारी सिंह ' दिनकर ' जी की जयंती के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी के अन्तर्गत श्रद्धेय दिनकर जी को समर्पित शब्द सुमन स्वरूप एक रचना:

          ' उठो! राष्ट्र के वीर '

उठो! राष्ट्र के वीरों,तुम गरजो और हुंकार भरो
जो आंख उठे हिंद की ओर तुम उसका संहार करो
हम अमन ,शांति के वाहक हैं, युद्ध नहीं नीति अपनी
पर जो जैसी भाषा बोले उस पर वैसा ही वार करो।

रिपु दमन को समर क्षेत्र में,निज प्राण हथेली पर रखकर
अर्जुन सम लक्ष्य साधकर तुम,कर्मपथ स्वीकार करो
युद्धवीर तुम, कर्मवीर तुम, अतुलित महाबली तुम
तान के सीना रण में , अरि के सीने पर वार करो।

उठो! देश के नव प्राण,दिखा दो ताकत उस शत्रु को
अपनी सबल भुजाओं से शत्रु दल पर प्रहार करो
मातृ भूमि की आन, बान और शान बचाए रखने को
मिट्टी में मिलाकर शत्रु,निज माटी पर प्रत्युपकार करो।

चुनौतियों की चट्टानों को अदम्य साहस से भेद के तुम
शत्रु की कुटिल नीतियों पर,तुम फ़ौलादी वार करो
वंदे मातरम् और जय हिंद,सज़ा के अपने मस्तक पर
जोश की ज्वाला उर में भरकर,पैनी तलवार की धार करो।

महाराणा,सुभाष के तुम वंशज,धीर,वीर और पराक्रमी
याद करो अपनी आज़ादी,फिर से आज ललकार करो
विजय तिलक और गौरव गान से मातृभूमि सुशोभित हो
लहरा के अपनी विजय पताका,भारत की जय जयकार करो।

स्वरचित एवं मौलिक रचना:
चंचल हरेंद्र वशिष्ट,हिन्दी भाषा शिक्षिका,रंगकर्मी एवं कवयित्री
आर के पुरम,नई दिल्ली
9818797390
23-09-2020

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