सफर#*रचनाकरा मीनू मीनल जी द्वारा खूबसूरत रचना#

61वें जन्मदिन को समर्पित मेरी रचना सादर प्रस्तुत
🙏🙏🙏
सफर....... 
सबों के अपने -अपने रास्ते थे,मैं तो
    मोड़ पर बस यूँ ही खड़ी थी 
किसी का साथ दो- चार पलों का,
   किसी का आजीवन,तय उन्हें
     करना था 
मैं तो बस उलझती- सुलझती,गिरती
  - पड़ती,हाँफती- दौड़ती चल रही
    थी। 

जिसको जैसा लगा साथ छोड़ा
   उसने,जैसा बना निभाया उसने 
यह तो उसकी मर्जी थी,मैं तो हरदम
     चल रही थी 
धूप-छांव,रात- दिन,सुबह- शाम
     जिंदगी ढ़ल रही थी 

 गपशप,घर -गृहस्थी,नाते-
     रिश्ते,जीवन दर्शन की बातें 
 चाय- पानी,नास्ता- वास्ता,सामान
      को सुरक्षित टटोलना 
सड़क देखकर गाड़ी अपनी 
      गतिसीमा में बढ़ रही थी। 

 लूटपाट,दुर्घटना, मारामारी न हो
     जाए
बेकार बकझक से बचते, आरामदेह
      जगह मिल जाए
 सफर सुखकर,मंगलप्रद, सुरक्षित
     कट जाए। 

मुसाफिरों का क्या? यहाँ से वहाँ,बस
    चलना और चलना 
थोड़ा।  विश्राम कर गंतव्य की ओर
   बढ़ना 
नियत जगह भली -भांति पहुँचें
 ,बस यही है अब प्रार्थना।।

*मीनू मीनल*

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