अखबार# कवि प्रकाश कुमार मधुबनी के द्वारा अद्वितीय रचना#

अखबार*
अरे अखबार तुम तो हो
 सभी के जीवन का सार।
तुमने से बदलने लगे है
मेरे स्वयं के विचार।

सुबह सुबह छप के
 घर- घर पहुँच जाते हो।
सभी लोगों के हाथ में होते हो।
 चाय के समय सब को भाते हो।। 

 ये तो बताओ लाखों लोगो को 
लुभाते हो कैसे आखिर कैसे।
मौन होते हो किन्तु कितना
 कुछ कह जाते हो।

किसी को दुखी करते हो।
किसी को ठहाके लगवाते हो।
किसी को लाख टके की बात 
बताकर धन्य कर जाते हो।।

दुनियाभर की बातों को 
अपने आप में समेटे।
सुख दुख प्रस्नन्न उदासी 
सभी एक साथ मे फेटे।।

यू तो बिकते हो चंद रुपयों में 
किन्तु कितनों के जीवन को
प्रभावित कर जाते हो।
आज के आज करते हो सब
 कितने दूर पहुँच जाते हो।

कौन कहाँ क्या करता है।
  कौन कैसे कब मरता है।।
नफा नुकसान किसको हुआ
तुम्हे वो सब पता होता है।।
  
कभी कभी सोचता हूँ कि
तुम बिन कैसे जुड़ पाते हम।
तुम्ही ने पूरी दुनियां को जोड़ा है
तुममें ही है ये करने का दम।।

तुम्हे देखकर ही बदलता 
नित दिन लोगो का व्यवहार।
कभी कभी सोचता हूँ मानो
तुम ना हो तो कैसा हो संसार।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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