कलम कहते रहे...
हर अल्फाज़ उनसे हम कहते रहे
यों जज़्बात निगाह से हम कहते रहे
बखुदा^हमने उन्हें क्या समझा (खुदा-कसम)
वो तो हमको ही सनम कहते रहे
कहीं हो ना जाते वो ज़्यादा बरहम^(क्रोधित)
उनसे हम हाले-दिल कम कहते रहे
कितनी अजीब अपनी शब गुजरी है
रातभर किस्सा - ए - ग़म कहते रहे
उनके लबों को मय कहा तो क्या
जामे-ज़ेहराब^ को चश्म^ कहते रहे
(विषपात्र, जल )
सफा-ए-चर्ख ^ जब सिहा किया तो (नभ से पन्ने )
हम अपनी आह को कलम कहते रहे
तमाम उम्र निर्दोष बने रहे "उड़ता"
और उनपर इल्जाम हम कहते रहे.
स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )
संपर्क 91-9466865227
udtasonu2003@gmail.com
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