दिनांक--29/09/2020
दिवस-- मंगलवार
**प्रकृति और जीवन**
प्रकृति की गोद से, भीनी भीनी खुशबू आए,
भंवरे इसमें गुंजन करते, मंद हवा लहराए
है यह मानव जीवन का आधार,
पर क्यों मन इस पर अत्याचार कराएं
वन्य जीवन को क्षति पहुंचाए,
भूगर्भा की दशा लुभाए,
नगण्य जीवन बस अब धरा पर,
मानव कर्म अपना बिसराए।
इस प्रकृति का नजारा,
इंसान के अत्याचारों का मारा।
फूहड़ जीवन हो गया है अब,
वन विहीन हो गया जंगल सारा।
वन - संपदा, नदी पहाड़ लुभाते हैं,
झरने, कोयल, पपीहा गीत गाते हैं।
मिटा रहा इंसान इस सुख को,
प्रकृति दुख को वो अपना सुख बताते हैं।
इस कलयुग में यह अपराध है,
चोरी घूसखोरी यह सब आबाद है।
कहीं बाढ़ तो कही महामारी का प्रकोप,
इसी कारण यह जीवन बर्बाद है।
संभल जा मनु, देख जमीं आस्मां को,
छीन प्रकृति का सुख, देख धरती मां को।
बेजुबान जानवर है, इंसान की नीयत से बेखबर,
इन्हें सहारा दो, मत जलाओ इनके आशियां को।।
रचनाकार-- नीलम डिमरी
चमोली,, उत्तराखंड
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