२४/०९/२०२०
विषय - कुछ अनकहे अल्फाज़
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हां मैं नारी हूं..
समझौता जीवन मेरा..
कई रिश्ते निभाने हैं..
हर कदम पर मौन हो..
कुछ अनकहे अल्फाज़
मन व्यथित आत्म पीड़ा
पर किस से कहें..
समाज इसकी आंखें तो हैं
उसे दिखाई नहीं देता
जानबूझकर कर देखता नहीं
सब कुछ सह जाऊं..
बिना प्रतिकार के..
बिना किसी चाह के..
आत्मसमर्पण कर..
सर्वस्व लुटा दिया..
हर रिश्ते में ईमानदारी..
हां वह नारी ही है..
झरने सा प्रवाहित..
अनंत प्रेम की वीणा
दूसरों का जीवन...
संगीतमय बना देती..
स्वयं की रक्त मजा
निचोड़ कर रख देती है..
अपनी अंतिम सांस तक...
रिश्ते को देना ही देना...
हां मैं नारी हूं..
सदियों से दबी हुई..
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़...
मेरे साथ ही स्वत: ....
गुमनाम खामोशी...
दब कर रह जाएंगे...
कुछ अनकहे अल्फाज़
कीमत चुकानी होगी...
जमींदोज होकर..
हां मैं नारी हूं....!!!
आरती तिवारी सनत
©® दिल्ली
२४/०९/२०२०
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