मंच को नमन
सिंदूर
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कहने को तो कह दिया है
चुटकी भर सिंदूर
जीवन में कभी सोचिए
कितना महत्वपूर्ण है सिंदूर
चुकाती है अपने प्राण देकर
हर नारी
समझो
सिंदूर की कीमत
जिसे तुम समझते हो
शोभा मस्तक की
वह शक्ति है
हिम्मत टूट जाती यम तक की
निभाती सर्वस्व अर्पण कर
समझो
सिंदूर की कीमत
रचे हैं इतिहास
किए शत्रुओं के ग्रास
तोड़ती है
अडिग पहाड़
हर लेती है
पल भर में संत्रास
समझो
सिंदूर की कीमत
वह निर्मल
शीतल सरिता की धार
रखती है
हृदय में अंगार
लाज रखती
दो जहां का
वही तरस रही
पाने को
समान अधिकार
समझो
सिंदूर की कीमत
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
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