कवि- आदरणीय सुनील दत्त मिश्रा जी द्वारा प्यारी रचना

कभी ऐसी हवेली थी, कभी ऐसा था दरवाजा ।
मगर समय की शिला पर कोई बचा राजा ।
उम्मीदों के महल बनते है ,और ढह ही जाते हैं।
कभी मुझको यह दरवाजे, हमेशा खुद बुलाते हैं ।
बुलंदी चाहे कितनी हो ,यादें आ ही जाती है।
कभी बेचेनियाँ बुनियाद ,की मुझको सताती है।
मगर जाऊं कहां जो प्यार से मुझको बुलाती थी।
अब मेरी मां नहीं ,जो मुझको यादों में झुलाती थी
अब ज्यादा लिख नहीं सकता
अब आंँसू आ ही जाए गे
ये दरवाजे है घर के हमेशा
मुझको बुलाएँगे
समर्पित  यादो की धरोहर

सुनील दत्त मिश्रा 
फ़िल्म एक्टर लेखक
बिलासपुर छत्तीसगढ़
🙏🙏🙏🙏 सर्वाधिकार सुरक्षित सुनील दत्त मिश्रा फिल्म एक्टर राइटर की कलम से।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ