कवि नन्दलाल मणि त्रिपाठी जी द्वारा 'बेटी' विषय पर रचना

बेटी है दुनियां का नाज
बेटी करती हर काज आज
बेटी अरमानों का अवनि
आकाश।।

शिक्षित बेटी नैतिक समाज
बेटी संरक्षण संरक्षित समाज
बेटी बुढापे का सहारा
बेटी माँ बाप के लिये 
ज्यादा संवेदन साज।।

बेटी बेटा एक सामान 
बेटी गर कोख में मारी
जाती दांवन दरिद्रता 
दुःख क्लेश का आवाहन
साम्राज्।।

बेटी लक्ष्मी है बेटी है
वरदान

लिंग भेद का पतन पतित
समाज।
बढती बेटी बढ़ाता गौरव मान
बेटी का सम्मान सशक्त राष्ट
समाज की बुनियाद।।

बेटी गुण ज्ञान धन धान्य
की पहचान खान
बेटी से मर्यादा का मान
बेटी निश्चिन्त निर्भय विकास
न्याय का पर्याय।।

बेटी नगर हाट चौराहे पर
दानवता का गर हुई शिकार
पीढ़ी का घुट घुट कर प्राश्चित 
 दमघुटता शर्मशार समाज।।

बेटी प्यारी न्यारी 
जीवन का आभार
बेटी  का रीती ,निति राजनीती
ध्यान, ज्ञान ,बैराग्य ,विज्ञानं
यत्र तंत्र सर्वत्र अधिकार।।

बेटी गौरव  गूँज गर्जना
बेटी स्वर ,संगीत ,व्यंजना
बेटी अक्षय ,अक्षुण, पुण्य ,कर्म
बेटी  संस्कृति संस्कार।।

बेटी का ना तिरस्कार 
बेटी संग ना भेद भाव
बेटी शिवा शिवाला ईश्वर
रचना की बाला बला नहीं
सृष्टि की ज्योति ज्वाला।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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