मंच को नमन
दिनांक -20 सितंबर 2020
विषय- भारत जैसा देश नहीं है
सारी दुनियां में,
भारत जैसा देश नहीं है
सिर झुका मान में,
सम ऐसा परिवेश नहीं है
निस्वार्थ सेवा,
भाव यहां पलते हर मन में
ऋषि रहे हमारे ,
वरदानी ज्ञानी कानन में
हम वेद का करें,
नित्य ही प्रातः संध्या पाठन
सांस करें सुगंधित,
फूल खिलखिलाएं उपवन में
झुके लोग भय में,
मेरा ऐसा वेश नहीं है
सारी दुनियां में,
भारत जैसा देश नहीं है
राम कृष्ण जन्में,
मेरी पावन वसुंधरा पर
नानक गौतम के,
महान है उपदेश धरा पर
रावण कंस मिले,
घमंडी बलशाली धूल यहां
करते हैं वंदन,
देव दनुज इस स्वच्छ उरा पर
कोई ह्रदय दुखें,
मेरा ऐसा उद्देश नहीं है
सारी दुनियां में,
भारत जैसा देश नहीं है
यहां रणांगण में,
योद्धा नव पृष्ठ रचा करते
यहां पर दान में,
दान प्राणदान दिया करते
इतिहास पढ़ोगे,
भारत का ही यश गाओगे
हम शत्रु के घर में,
ध्वज तिरंगा लहराया करते
कोई डर भागे,
करते हम कभी क्लेश नहीं है
सारी दुनिया में,
भारत जैसा देश नहीं है
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच
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