चिल्लाना#भास्कर सिंह माणिक,( कवि एवं समीक्षक )कोंच जी द्वारा बेहतरीन रचना#

मंच को नमन
 
शीर्षक - चिल्लाना
चीखने से ,चिल्लाने से
बेमतलब डांटने से
कब किसका हुआ भला
अभद्र बोलने से

काम बने बनाए 
बिगाड़ देता है
क्रोध
शत्रु बन जाती है दुनियां
व्यर्थ
बड़बड़ाने से

कोई पागल
कोई नकारा
कोई उद्दंड
कोई मक्कार
कोई कायर
पता नहीं
क्या क्या कहता है जग
इंद्रियों को वश में रखो
करने लगता है नफरत
हर व्यक्ति
चिड़चिड़ाने से

शांत दिमाग
मधुर वाक्य
समरस भाषा
दुश्मन को भी
झुका देता है
नभ को विवश कर देता
गुणगान गाने के लिए
कब
कौन
शिखर चढ़ा
चीखने से
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,( कवि एवं समीक्षक )कोंच

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