कवि- आदरणीय नारायण प्रसाद जी द्वारा मधुर रचना..

कविता का शीर्षक -" माँ आप मेरे लिए हो खास।"
गम का मुझे है, कुछ एहसास ।
हो जाता हूँ मैं ,दुखी और उदास ।
जब कोई करता है आपका उपहास ।
मुझे तो वो लगता है  बकवास ।
माँ आप मेरे लिए हो खास ।
ये धरती और वो आकाश ।
जंगल हो या वनस्पति, हो चाहे हो घास ।
माँ सब में करती हो तुम्हीं निवास ।
तुम्हीं से है यह साँस, तुम्हीं से बना यह मांस ।
माँ आप मेरे लिए ................................।
न था मुझे पढ़ने-लिखने का अभ्यास ।
एक-एक कर गिनती सिखायी दस ,बीस,पचास ।
ताकि हर इंतिहान में, हो जाऊ मैं पास ।
माँ आप ही से हुआ है मेरा विकास ।
माँ आप मेरे लिए ...................।
मुझे खिलाया-पिलाया ,खुद रह के उपवास ।
धन्य हो आप माँ, सदा करना मेरे ह्रदय में वास ।
ना आता है माँ, अब तेरे सिवाय  कुछ रास ।
माँ आप ने ही मुझे, अंधेरे में दिखायी प्रकाश ।
माँ आप मेरे लिए ...............।
माँ जब तक है यह साँस ।
मार डालूँगा दुश्मनों को,कर के तलाश ।
जीते जी ना बनूँगा जिंदा लाश ।
सदा बना रहूँ माँ, मैं आपका दास ।
भूत ,भविष्य हो या वर्तमान ।
माँ आप मेरे लिए .............।
✍🏻नारायण प्रसाद 
     दुर्ग छत्तीसगढ़
(स्वरचित कविता)

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