बेटियांँ
मेरे देश की जब से पढ़ गईं हैं बेटियांँ
अब लड़कों से आगे बढ़ गई ये बेटियांँ
नाम रोशन करती देश एवं परिवार का
सफलता की सीढ़ी चढ़ रहीं हैं बेटियांँ
घर और बाहर दोनों देखती हैं अब तो ये
शक्ति संकल्प दोनों से दृढ़ हैं ये बेटियांँ
मायके का मान और आन ससुराल की
परिवार रूपी वृक्ष की जड़ हैं ये बेटियांँ
कुदरत ने इन्हें दी है सहनशीलता ग़ज़ब
वैसे बड़ी कोमल मन दर्पण हैं बेटियांँ
संवेदनशील हैं इतनी,भावुक हो बरसती
नीर भरे से बादल सी ये होती हैं बेटियांँ
अपने लिए जीती नहीं औरों के हित मरें
इस अखिल सृष्टि की धड़कन हैं बेटियांँ
तन से कोमल सही पर मन से मजबूत है
नित नया इतिहास गढ़ रहीं हैं बेटियांँ
न जाने कब छोटी से हो जाती हैं बड़ी
हर रिश्ते को बखूबी निभाती हैं बेटियांँ
बस माँ के लिए ही वो रहती लाडो सदा
सारे घर भर को लाड़ लड़ाती हैं बेटियांँ
स्वरचित एवं मौलिक सृजन
-चंचल हरेंद्र वशिष्ट, वरिष्ठ हिंदी
अध्यापिका एवं कवयित्री ,
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