जिनकी पंक्ति ये आज भी नारी सम्मान में रूपक की तरह प्रयुक्त होती है
कामायनी जिनकी हिंदी का ताजमहल कहलाती है
बहुमुखी प्रतिभा के थे धनी
पांच भाषाओं का रखते थे ज्ञान
ज्ञान अध्यात्म देशप्रेम का संगम थे
आंसू, झरना की धारा में हम आज भी गोते खाते हैं
चंद्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु,,ध्रुव
स्वामिनि नाटक बड़े अनोखे थे
आकाशदीप, प्रतिध्वनि कहानी संग्रह भावात्मकता अलंकारिता से भरपूर थे
तितली, कंकाल, इरावती उपन्यासों की तिगड़ी थी
दुर्भाग्य पर इरावती रह गया अधूरा है
रोग ,शोक ,मृत्यु तीन सवालों की
खातिर वैराग्य भी धारा था
छायावाद के चार स्तम्भों में एक जय शंकर प्रसाद थे
वाराणसी में जन्म लिया
वाराणसी में है त्यागे प्राण थे
संगीतमय गीतों से काव्य को अपने सजाया था
याद आते हो हमको बहुत
ओ साहित्य के अमर प्रसाद।।
स्वरचित
नेहा जैन
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