कवि लेफ्टिनेंट पुष्कर शुक्ला जी द्वारा प्रेम" - 'एक अनकहा एहसास' विषय पर रचना

"प्रेम" - एक अनकहा एहसास
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प्रेम उल्लास है, मन की एक आस है,
प्रेम ही दिल की उलझन का विश्वास है।
प्रेम में हम समर्पित हुये मीरा सम,
प्रेम मोहन को राधा का आभास है...


प्रेम सद्भाव है धूप में छांव है,
प्रेम भटके पथिक का स्वजन गांव है...
प्रेम से ही हमारा तरण होता है,
प्रेम पुष्कर में विचरित सजल नांव है...


प्रेम आनंद है, भाव सानंद है,
प्रेम ही बस सुलभ कांति मकरंद है...
प्रेम तो एक खुला आसमां है मगर
प्रेम मात्राओं का सुर वदित छंद है...


प्रेम तो माया है खुद का ही साया है...
प्रेम में तेरा चेहरा मुझे भाया है...
प्रेम में जिन भी बातों को विस्मृत किया...
प्रेम में फिर से उनको ही दोहराया है...


प्रेम तो गीत है, मेरा मन मीत है...
प्रेम शबरी के बेरों में प्रभु प्रीति है...
प्रेम का व्याकरण आचरण है अलग...
प्रेम प्रेमी के बंधन की ही रीति है...


प्रेम अविनाश है, दिल का एहसास है...
प्रेम फिर से मिलन की भी एक आस है...
प्रेम तो भावनाओं की अभिव्यक्ति हैं...
प्रेम गौरी पति का श्रवण मास है...


प्रेम तो नीर है, प्रेम ही क्षीर है...
प्रेम राधा नयन में छुपा पीर है...
प्रेम वश ही तो त्यागा भरत ने महल..
प्रेम दुःखहर्ता सीता के रघुवीर हैं...


प्रेम सुदृष्टि है, प्रेम ही सृष्टि है...
प्रेम शब्दों से अर्थों की ही पुष्टि है...
प्रेम से ही हृदय में छिड़ा द्वंद जो...
प्रेम ही उन सभी की तो संतुष्टि है...

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*"लेफ्टिनेंट पुष्कर शुक्ला"*

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1 टिप्पणियाँ

  1. इतने प्रेम और आशीर्वाद के लिए बदलाव मंच का और आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

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