राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर#"सिंधु" डाॅ ज्योत्सना सिंह साहित्य ज्योति#

*राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर शत शत नमन*
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जन्म:-23 सितंबर 1908
मृत्यु:-24 अप्रैल 1974



 *रामधारी सिंह दिनकर* साहित्य के वह सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कलम में दिनकर यानी सूर्य के समान चमक थी। उनकी कविताएं सिर्फ़ उनके समय का सूरज नहीं हैं बल्कि उसकी रौशनी से पीढ़ियां प्रकाशमान होती हैं।
रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे।वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।

"जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।"

दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।

रश्मिरथी, उर्वशी(ज्ञानपीठ से सम्मानित),हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, हाहाकार, चक्रव्यूह, आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं |

1959: *साहित्य अकादमी पुरस्कार* 
1959: *पद्म भूषण* 
1972: *ज्ञानपीठ पुरस्कार* से सम्मानित किया गया |

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"सिंधु" डाॅ ज्योत्सना सिंह साहित्य ज्योति

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