कवयित्री कलावती कर्वा "षोडशकला" जी द्वारा रचना (विषय-लक्ष्मण का वनवास)

शीर्षक - लक्ष्मण का वनवास

राम के साथ लक्ष्मण ने, स्वीकारा वनवास।
भाई भाभी की सेवा करी, बन गया दास। 
राम,सीता संग, लक्ष्मण नाम लिया जाता। 
भाई हो लक्ष्मण जैसा, अपना फर्ज निभाता। 
रात-दिन सेवा करी, निभा दिया अपना धर्म। 
फर्ज निभाने निद्रा त्यागी, किया अपना कर्म । 
पत्नी उर्मिला को छोड़, भाई संग वन स्वीकारा। 
राम का दुलारा बन गया, भाई लक्ष्मण प्यारा।
राम के साथ मंदिरों में, लक्ष्मण भी पूजे जाते। 
प्रेम भाव से भगवान, भक्तों को दिल में बैठाते। 
भाई के लिए भाई के, बलिदान की  भावना। 
सीख दे रहा नहीं रखना, भाई प्रति दुर्भावना।
लक्ष्मण की भक्ति, किन शब्दों में करु बखान। 
राम के साथ युगों युगों तक, लक्ष्मण गुणगान। 
तीनों लोकों में नहीं मिले लक्ष्मण सा भाई। 
लक्ष्मण वनवास लिखूँ, शक्ति शारदे से पाई। 
भाई का भाई के प्रति, था बड़ा यह समर्पण।
राजपाट त्याग कर , किया वनवास लक्ष्मण। 
लक्ष्मण शेषनाग अवतार,राम साथ निभाया। 
प्रभु भक्ति की सीख, जगत को देने आया। 
बङा त्याग उर्मिला का, लक्ष्मण की जुदाई। 
भाई का प्रेम निभा,उर्मिला भी नाम कमाई। 

कलावती कर्वा "षोडशकला"
कूचबिहार 
पश्चिम बंगाल

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